धर्म रहस्य क्या है
इस कहानी मे मे हम जानेंगे की सभी बातो का विश्लेषण करेंगे
गुरु एक खोजी होता है और वह वैज्ञानिक होता है और एक व्यक्ति एक किसान होता है एक माली होता है एक शिल्पकार भी होता है
धर्म रहस्य क्या है |
याद रखिये गुरु दीक्षा के बाद कोई पलट नही सकता क्योंकि तुम ईश्वर को साक्षी रख कर एक रिश्ता निभाते हो
गुरु इस ब्रह्मांड का आखरी रिश्ता होता है जहा शिष्य अपना जीव और मनुष्य स्वभाव छोड़ कर परमात्मा के साथ जुड़कर उसके स्वाभाव को पाने की कोशिश करता है
शिष्य के लिए गुरु बदलना बहुत ही आसान है पर गुरु के लिए शिष्य नही क्योंकि उसे सीखाने और समझने मे भी समय लगता है |
उस वैज्ञानिक से पूछो जो रिसर्च करता है प्रयोग करता है अपने जीवन का लक्ष्य उसने वो आविष्कार को बना लिया कितना समय बुद्धि मेहनत तर्क वितर्क लगन अपना सबकुछ लगता है ऐसी तरह एक किसान से पूछो हल चलाते चलाते उसके हाथ में छाले पड़ गए कड़ी धूप में बैल चलाया जमीन खोदी उसमे बीज बोया जमीन मे पानी सीचा तब जाकर फल प्राप्त हुआ
एक शिल्प कार को पूछो मूर्ति बनाने में क्या समय जाता है और क्या मेहनत लगती है कितना ध्यान लगाना पड़ता है एक पत्थर को मूर्ति बनाने में क्या कुछ नहीं करना पड़ता
एक माली को पूछो एक मटका कैसे बनता है माटी लाना चाक पर चढ़ाना मिट्टी गोदना पत्थर निकालना मटके को आकार देना उसे अंदर हाथ रख कर संभालना बाहर से आकार देना
किसान की फसल प्रकृति ने बरबाद कर दीया तो नुकसान किसका हुआ
मूर्ति कार की मूर्ति खंडित हो गई तो नुकसान किसका हुआ
वैज्ञानिक का फॉर्मूला फेल हो गया तो नुकसान किसका हुआ
माली का मटका टूट गया तो नुकसान किसका हुआ
सब लोग दुनिया को देने के लिए ही मेहनत कर रहे थे फिर भी वो हारते नही बार बार प्रयास कर कार्य सफल करते है
गुरु न मिट्टी बदलता है न जमीन न पत्थर ना आविष्कार दुनिया का एकमात्र व्यक्ति होता है जो किसी भी हाल में अपने शिष्य के उद्धार के लिए बार बार जन्म लेता है क्योंकि गुरु के लिए जन्म मृत्यु एक खेल है
गुरु अपने शिष्य को अपना संगी बनाते है उसे गुरु तत्व की कला सिखाते है कैसे गुरु ब्रह्मा हो कर सर्जन करता है कैसे विष्णु हो कर पालन कर सकते हो कैसे शिव हो कर अज्ञान का संहार कर सकते हो और कैसे परब्रह्म हो कर ईश्वर पैदा कर सकते हो इसी लिए जो गुरु तुम्हारे पास आये है वो साक्षात् परब्रह्म है
गुरु की चिंता मात्र तुम्हारी मुक्ति से होती है युगों युगों से अबोध और अज्ञानी की तरह जीव भाव का वर्तन करके अपने आपको पशु बनाया हुआ है गुरु तुम में ब्रह्म की चेतना डाल कर ऊंची उड़ान लगवाते है पर संभाल कर जब तक आविष्कार पूर्ण न हो जाए खेत फसल न देने लगे मूर्ति मंदिर में पूजी न जाए तब तक रुकना मत क्योंकि शिष्य के लिए कुछ साल का खेल होता है पर गुरु का तो पूरा जीवन चला जाता है वो एक ढूंढने में गुरु तुम्हे चुनते हो तो फिर सज्ज हो जाना
"राम काज करी बेको आतुर"
अपनी मन की एक जीवन में मत सुनना वो विद्रोह छेड़ेगा जब तुम शक्ति के करीब होंगे हर जगह से मन प्रकट हो कर तुम्हे सिद्धि से दूर कर देगा तुम्हे डटे रहना है गुरु आज्ञा में
सच्चे गुरु के पास ही परीक्षा होगी मन की वरना मूर्ति में बैठा निराकार और व्यापारी गुरुओं को तुम्हारी घड़ाई से क्या मिलेगा
कोहिनूर को तराशने की जरूरत नही होती वो खुद ब खुद दूसरे पत्थरों से चमकदार दिखेगा वैसे ही सही शिष्य
दूसरे शिष्यो से अलग निकाल कर आएगा
अपने शरीर में रहने वाले को गुरु के शरीर में रहने वाले को सौप दो कल्याण हो जायेगा
इसे भी ब्रह्म निरूपण कहते है
लेख से लिया गया और पोस्ट किया गया है
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