कामाख्या देवी साधना vidhi
कामाख्या देवी साधना vidhi |
कामाख्या देवी साधना कैसे आज आपको अनमोल साधना की तरफ से पूरी साधना जानकरी और विधि दी रही है इससे आप पूरी साधना को गुरु अघ्या द्वारा प्राप्त कर निरंतर कर सकते है
कामाख्या देवी
कामख्या देवी कौन है कैसे कि जा सकती है इनकी आराधना
जाने पूरा प्रोसेस और बेहिचक इस साधना को कर सकते है
कामाख्या देवी साधना vidhi |
शक्ति के उपासकों के लिए ‘कामाख्या-मन्त्र’ की साधना अत्यन्त आवश्यक है। यह ‘कामाख्या-मन्त्र’ कल्प-वृक्ष के समान है। सभी साधकों को एक, दो या चार बार इसका साधना एक वर्ष मे अवश्य करना चाहिए। इस मन्त्र की साधना में चक्रादि-शोधन या कलादि-शोधन की आवश्यकता नहीं है। इसकी साधना से सभी विघ्न दूर होते हैं और शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त होती है।
इस पोस्ट के माध्यम से हम सरलतम साधना विधि बता रहे है आशा है आप लोग इसका उपयोग कर प्रारब्ध भोग काटकर उन्नति के मार्ग में सफल होंगे।
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करनापिछाचीनी साधना
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इस साधना में शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि की अतिआवश्यकता होती है इसलिये प्रातःकाल अथवा रात्रि काल मे स्नान आदि से निवृत होकर पश्चिम अथवा उत्तर दिशा में मुख्य कर लाल ऊनि आसन बिछाकर बैठे साधना पर बैठने से पहले यह सुनिश्चित कर ले बीच मे किसी भी प्रकार का विक्षेप ना हो इसके लिय सभी आवश्यक कार्य पहले ही पूर्ण कर ले हो सके तो साधना स्थल (कमरे) को अंदर से बंद कर के रखें।
आसान पर स्थान ग्रहण करने के बाद शरीर एवं आसन पवित्रीकरण के बाद अपने सामने एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर उसपर किसी भी देवी की प्रतिमा अथवा चित्र केवल प्रतीकात्मक रूप में रखे चित्र ना भी हो तब केवल घी के दीपक से ही काम चल सकता है। दीपक जलाने के बाद नीचे दिए गए मंत्र क्रिया अनुसार साधना आरम्भ करें।
।। विनियोग ।।
ॐ अस्य कामाख्या-मन्त्रस्य श्री अक्षोभ्य ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: , श्री कामाख्या देवता, सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोग:।
।। ऋष्यादि-न्यास ।।
श्रीअक्षोभ्य-ऋषये नम: शिरसि,
अनुष्टुप्-छन्दसे नम: मुखे,
श्रीकामाख्या-देवतायै नम: हृदि,
सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।
।। कर-न्यास ।।
त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:,
त्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा,
त्रूं मध्यमाभ्यां वषट्,
त्रैं अनामिकाभ्यां हुम्,
त्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्,
त्र: करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।
।। अङ्ग-न्यास ।।
त्रां हृदयाय नम:,
त्रीं शिरसे स्वाहा,
त्रूं शिखायै वषट्,
त्रैं कवचाय हुम्,
त्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्,
त्र: अस्त्राय फट्।
कामाख्या देवी का ध्यान
उक्त प्रकार न्यासादि करने के बाद भगवती कामाख्या का निम्न प्रकार से ध्यान करना चाहिए-
भगवती कामाख्या लाल वस्त्र-धारिणी, द्वि-भूजा, सिन्दूर-तिलक लगाए हैं।भगवती कामाख्या निर्मल चन्द्र के समान उज्ज्वल एवं कमल के समान सुन्दर मुखवाली हैं।भगवती कामाख्या स्वर्णादि के बने मणि-माणिक्य से जटित आभूषणों से शोभित हैं। भगवती कामाख्या विविध रत्नों से शोभित सिंहासन पर बैठी हुई हैं। भगवती कामाख्या मन्द-मन्द मुस्करा रही हैं। भगवती कामाख्या उन्नत पयोधरोंवाली हैं। कृष्ण-वर्णा भगवती कामाख्या के बड़े-बड़े नेत्र हैं। भगवती कामाख्या विद्याओं द्वारा घिरी हुई हैं। डाकिनी-योगिनी द्वारा शोभायमान हैं। सुन्दर स्त्रियों से विभूषित हैं। विविध सुगन्धों से सु-वासित हैं। हाथों में ताम्बूल लिए नायिकाओं द्वारा सु-शोभिता हैं।भगवती कामाख्या समस्त सिंह-समूहों द्वारा वन्दिता हैं। भगवती कामाख्या त्रि-नेत्रा हैं। भगवती के अमृत-मय वचनों को सुनने के लिए उत्सुका सरस्वती और लक्ष्मी से युक्ता देवी कामाख्या समस्त गुणों से सम्पन्ना, असीम दया-मयी एवं मङ्गल- रूपिणी हैं।
उक्त प्रकार से ध्यान कर कामाख्या देवी की पूजा कर कामाख्या मन्त्र का ‘जप’ करना चाहिए।’जप’ के बाद निम्न प्रकार से ‘प्रार्थना’ करनी चाहिए।
प्रार्थना
कामाख्ये काम-सम्पन्ने, कामेश्वरि! हर-प्रिये!
कामनां देहि मे नित्यं, कामेश्वरि! नमोऽस्तु ते।।
कामदे काम-रूपस्थे, सुभगे सुर-सेविते!
करोमि दर्शनं देव्या:, सर्व-कामार्थ-सिद्धये।।
अर्थात् हे कामाख्या देवि! कामना पूर्ण करनेवाली,कामना की अधिष्ठात्री, शिव की प्रिये! मुझे सदा शुभ कामनाएँ दो और मेरी कामनाओं को सिद्ध करो। हे कामना देनेवाली, कामना के रूप में ही स्थित रहनेवाली, सुन्दरी और देव-गणों से सेविता देवि! सभी कामनाओं की सिद्धि के लिए मैं आपके दर्शन करता हूँ।
कामाख्या देवी का 22 अक्षर का मन्त्र ‘कामाख्या तन्त्र’ के चतुर्थ पटल में कामाख्या देवी का 22 अक्षर का मन्त्र उल्लिखित है निम्न मंत्र की 41 दिन कम से कम 31 या 41 माला प्रतिदिन करने से माता की कृपा प्राप्त कर मनुष्य अपने अभीष्ट कार्यो को पूर्ति कर सकता है।
मंत्र - त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा
उक्त मन्त्र महा-पापों को नष्ट करनेवाला, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देनेवाला है। इसके ‘जप’ से साधक साक्षात् देवी-स्वरूप बन जाता है। इस मन्त्र का स्मरण करते ही सभी विघ्न नष्ट हो जाते हैं।इस मन्त्र के ऋष्यादि ‘त्र्यक्षर मन्त्र’ (त्रीं त्रीं त्रीं) के समान हैं।’ध्यान’ इस प्रकार किया जाता हैमैं योनि-रूपा भवानी का ध्यान करता हूँ, जो कलि-काल के पापों का नाश करती हैं और समस्त भोग-विलास के उल्लास से पूर्ण करती हैं।मैं अत्यन्त सुन्दर केशवाली, हँस-मुखी, त्रि-नेत्रा, सुन्दर कान्तिवाली, रेशमी वस्त्रों से प्रकाशमाना, अभय और वर-मुद्राओंसे युक्त, रत्न-जटित आभूषणों से भव्य, देव-वृक्ष केनीचे पीठ पर रत्न-जटित सिंहासन पर विराजमाना, ब्रह्मा-विष्णु-महेश द्वारा वन्दिता, बुद्धि-वृद्धि-स्वरूपा, काम-देव के मनो-मोहक बाण के समान अत्यन्तकमनीया, सभी कामनाओं को पूर्णकरनेवाली भवानी का भजन करता हूँ।
माँ कामाख्या योनि स्तोत्र एवं कवच
वामाचार पूजा में कामख्या योनि स्तोत्र एवं कवच पाठ माता कामख्या देवी की आराधना का अतिसुगम एवं शक्तिशाली पाठ है। सौभाग्य एवं मनोकामना पूर्ति की इच्छा रखने वाले साधक इसका नित्य पाठ करने से कुछ ही समय मे आश्चर्यजनक फल पा सकते है। इसका नित्य यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक पाठ करने से फल शीघ्र मिलने की सम्भवना बढ़ती है। इसका पाठ निष्काम भाव से ही करें सकाम भाव से पाठ करने के लिये श्रीविद्या दीक्षित होना आवश्यक है तथा इसके नियम भी कठिन होते है।
साधक पाठ करने से पहले माता का मणिपुर चक्र में नीचे दिए श्लोकों को पढ़ते हुए मानसिक ध्यान करके पाठ आरम्भ कर सकते है पाठ पूर्ण होने के बाद मानसिक रूप से ही पाठ को अपने गुरु को समर्पण कर आसन के आगे जल छोड़कर उसे माथे पर लगाकर प्राणाम करके एक पाठ सिद्ध कुंजिका के बाद देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें तो माता पाठ की त्रुटियों को क्षमा करके इच्छित फल प्रदान करती है।
मां कामाख्या योनि स्त्रोत
ॐभग-रूपा जगन्माता सृष्टि-स्थिति-लयान्विता ।
दशविद्या - स्वरूपात्मा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।१।।
कोण-त्रय-युता देवि स्तुति-निन्दा-विवर्जिता ।
जगदानन्द-सम्भूता योनिर्मां पातु सर्वदा ।।२।।
कात्र्रिकी - कुन्तलं रूपं योन्युपरि सुशोभितम् ।
भुक्ति-मुक्ति-प्रदा योनि: योनिर्मां पातु सर्वदा ।।३।।
वीर्यरूपा शैलपुत्री मध्यस्थाने विराजिता ।
ब्रह्म-विष्णु-शिव श्रेष्ठा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।४।।
योनिमध्ये महाकाली छिद्ररूपा सुशोभना ।
सुखदा मदनागारा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।५।।
काल्यादि-योगिनी-देवी योनिकोणेषु संस्थिता ।
मनोहरा दुःख लभ्या योनिर्मां पातु सर्वदा ।।६।।
सदा शिवो मेरु-रूपो योनिमध्ये वसेत् सदा ।
वैवल्यदा काममुक्ता योनिर्मां पातु सर्वदा ।।७।।
सर्व-देव स्तुता योनि सर्व-देव-प्रपूजिता ।
सर्व-प्रसवकत्र्री त्वं योनिर्मां पातु सर्वदा ।।८।।
सर्व-तीर्थ-मयी योनि: सर्व-पाप प्रणाशिनी ।
सर्वगेहे स्थिता योनि: योनिर्मां पातु सर्वदा ।।९।।
मुक्तिदा धनदा देवी सुखदा कीर्तिदा तथा ।
आरोग्यदा वीर-रता पञ्च-तत्व-युता सदा ।।१०।।
योनिस्तोत्रमिदं प्रोत्तं य: पठेत् योनि-सन्निधौ ।
शक्तिरूपा महादेवी तस्य गेहे सदा स्थिता ।।११।।
।। मां कामाख्या देवी कवच।।
महादेव उवाच
शृणुष्व परमं गुहयं महाभयनिवर्तकम्।कामाख्याया: सुरश्रेष्ठ कवचं सर्व मंगलम्।।यस्य स्मरणमात्रेण योगिनी डाकिनीगणा:।राक्षस्यो विघ्नकारिण्यो याश्चान्या विघ्नकारिका:।।क्षुत्पिपासा तथा निद्रा तथान्ये ये च विघ्नदा:।दूरादपि पलायन्ते कवचस्य प्रसादत:।।निर्भयो जायते मत्र्यस्तेजस्वी भैरवोयम:।समासक्तमनाश्चापि जपहोमादिकर्मसु।भवेच्च मन्त्रतन्त्राणां निर्वघ्नेन सुसिद्घये।
महादेव जी बोले-सुरश्रेष्ठ!
अर्थ - भगवती कामाख्या का परम गोपनीय महाभय को दूर करने वाला तथा सर्वमंगलदायक वह कवच सुनिये, जिसकी कृपा तथा स्मरण मात्र से सभी योगिनी, डाकिनीगण, विघ्नकारी राक्षसियां तथा बाधा उत्पन्न करने वाले अन्य उपद्रव, भूख, प्यास, निद्रा तथा उत्पन्न विघ्नदायक दूर से ही पलायन कर जाते हैं। इस कवच के प्रभाव से मनुष्य भय रहित, तेजस्वी तथा भैरवतुल्य हो जाता है। जप, होम आदि कर्मों में समासक्त मन वाले भक्त की मंत्र-तंत्रों में सिद्घि निर्विघ्न हो जाती है।।
कवच पाठ आरम्भ
ओं प्राच्यां रक्षतु मे तारा कामरूपनिवासिनी।आग्नेय्यां षोडशी पातु याम्यां धूमावती स्वयम्।।नैर्ऋत्यां भैरवी पातु वारुण्यां भुवनेश्वरी।वायव्यां सततं पातु छिन्नमस्ता महेश्वरी।।
कौबेर्यां पातु मे देवी श्रीविद्या बगलामुखी।ऐशान्यां पातु मे नित्यं महात्रिपुरसुन्दरी।।
ऊध्र्वरक्षतु मे विद्या मातंगी पीठवासिनी।सर्वत: पातु मे नित्यं कामाख्या कलिकास्वयम्।।
ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्वविद्यामयी स्वयम्।शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा भालं श्री भवगेहिनी।।
त्रिपुरा भ्रूयुगे पातु शर्वाणी पातु नासिकाम।चक्षुषी चण्डिका पातु श्रोत्रे नीलसरस्वती।।
मुखं सौम्यमुखी पातु ग्रीवां रक्षतु पार्वती।जिव्हां रक्षतु मे देवी जिव्हाललनभीषणा।।
वाग्देवी वदनं पातु वक्ष: पातु महेश्वरी।बाहू महाभुजा पातु कराङ्गुली: सुरेश्वरी।।
पृष्ठत: पातु भीमास्या कट्यां देवी दिगम्बरी।उदरं पातु मे नित्यं महाविद्या महोदरी।।
उग्रतारा महादेवी जङ्घोरू परिरक्षतु।गुदं मुष्कं च मेदं च नाभिं च सुरसुंदरी।।
पादाङ्गुली: सदा पातु भवानी त्रिदशेश्वरी।रक्तमासास्थिमज्जादीनपातु देवी शवासना।।
।महाभयेषु घोरेषु महाभयनिवारिणी।पातु देवी महामाया कामाख्यापीठवासिनी।।
भस्माचलगता दिव्यसिंहासनकृताश्रया।पातु श्री कालिकादेवी सर्वोत्पातेषु सर्वदा।।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं कवचेनापि वर्जितम्।तत्सर्वं सर्वदा पातु सर्वरक्षण कारिणी।।
इदं तु परमं गुह्यं कवचं मुनिसत्तम।कामाख्या भयोक्तं ते सर्वरक्षाकरं परम्।।
अनेन कृत्वा रक्षां तु निर्भय: साधको भवेत।न तं स्पृशेदभयं घोरं मन्त्रसिद्घि विरोधकम्।।
जायते च मन: सिद्घिर्निर्विघ्नेन महामते।इदं यो धारयेत्कण्ठे बाहौ वा कवचं महत्।।
अव्याहताज्ञ: स भवेत्सर्वविद्याविशारद:।सर्वत्र लभते सौख्यं मंगलं तु दिनेदिने।।
य: पठेत्प्रयतो भूत्वा कवचं चेदमद्भुतम्।स देव्या: पदवीं याति सत्यं सत्यं न संशय:।।
मां कामाख्या देवी कवच हिन्दी अर्थ
कामरूप में निवास करने वाली भगवती तारा पूर्व दिशा में, पोडशी देवी अग्निकोण में तथा स्वयं धूमावती दक्षिण दिशा में रक्षा करें। नैऋत्यकोण में भैरवी, पश्चिम दिशा में भुवनेश्वरी और वायव्यकोण में भगवती महेश्वरी छिन्नमस्ता निरंतर मेरी रक्षा करें।। उत्तरदिशा में श्रीविद्यादेवी बगलामुखी तथा ईशानकोण में महात्रिपुर सुंदरी सदा मेरी रक्षा करें। माँ भगवती
माँ भगवती कामाख्या के शक्तिपीठ में निवास करने वाली मातंगी विद्या ऊध्र्वभाग में और भगवती कालिका कामाख्या स्वयं सर्वत्र मेरी नित्य रक्षा करें। ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्व विद्यामयी स्वयं दुर्गा सिर की रक्षा करें और भगवती श्री भवगेहिनी मेरे ललाट की रक्षा करें। त्रिपुरा दोनों भौंहों की, शर्वाणी नासिका की, देवी चंडिका आँखों की तथा नीलसरस्वती दोनों कानों की रक्षा करें। भगवती सौम्यमुखी मुख की, देवी पार्वती ग्रीवा की और जिव्हाललन भीषणा देवी मेरी जिव्हा की रक्षा करें। वाग्देवी वदन की, भगवती महेश्वरी वक्ष: स्थल की, महाभुजा दोनों बाहु की तथा सुरेश्वरी हाथ की, अंगुलियों की रक्षा करें। भीमास्या पृष्ठ भाग की, भगवती दिगम्बरी कटि प्रदेश की और महाविद्या महोदरी सर्वदा मेरे उदर की रक्षा करें। महादेवी उग्रतारा जंघा और ऊरुओं की एवं सुरसुन्दरी गुदा, अण्डकोश, लिंग तथा नाभि की रक्षा करें। भवानी त्रिदशेश्वरी सदा पैर की, अंगुलियों की रक्षा करें और देवी शवासना रक्त, मांस, अस्थि, मज्जा आदि की रक्षा करें। भगवती कामाख्या शक्तिपीठ में निवास करने वाली, महाभय का निवारण करने वाली देवी महामाया भयंकर महाभय से रक्षा करें। भस्माचल पर स्थित दिव्य सिंहासन विराजमान रहने वाली श्री कालिका देवी सदा सभी प्रकार के विघ्नों से रक्षा करें। जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है उन सबकी रक्षा सर्वदा भगवती सर्वरक्षकारिणी करे। मुनिश्रेष्ठ! मेरे द्वारा आप से महामाया सभी प्रकार की रक्षा करने वाला भगवती कामाख्या का जो यह उत्तम कवच है वह अत्यन्त गोपनीय एवं श्रेष्ठ है। इस कवच से रहित होकर साधक निर्भय हो जाता है। मन्त्र सिद्घि का विरोध करने वाले भयंकर भय उसका कभी स्पर्श तक नहीं करते हैं। महामते! जो व्यक्ति इस महान कवच को कंठ में अथवा बाहु में धारण करता है उसे निर्विघ्न मनोवांछित फल मिलता है। वह अमोघ आज्ञावाला होकर सभी विद्याओं में प्रवीण हो जाता है तथा सभी जगह दिनोंदिन मंगल और सुख प्राप्त करता है। जो जितेन्द्रिय व्यक्ति इस अद्भुत कवच का पाठ करता है वह भगवती के दिव्य धाम को जाता है। यह सत्य है, इसमें संशय नहीं है।
अभी तक आपने सारे पोस्ट को पढ़ा उसके लिए बहुत बहुत धंन्यवाद
देवी माँ आपको साधना में सफलता दे और अपार सफलता दे
नोट माँ कामख्या तंत्र शास्त्र की आराध्या है इनका सकाम अनुष्ठान करने से पहले गुरुआज्ञा अतिआवश्यक है।
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धिमही तन्नो देवी प्रचोदयात्
Padhte rahe Anmol Sadhna
Apko Yaha par sabhi Tarah ki Sadhna Ki jankari aur sari vidhi batayi jayegi
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