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रविवार, 6 अगस्त 2023

ट्रीजटा आधोरी साधना प्रयोग विधी

 त्रिजटा अघोरी साधना प्रयोग विधी 

मूल तत्त्व दुर्लभ स्तोत्र 

 त्रिजटा अघोरी

"गुरु मंत्र का अर्थ "

" परम पूज्य सदगुरुदेव द्वारा प्रदत गुरु मंत्र का क्या अर्थ है ?" मैंने बीच में ही टोकते हुए पूछा ।

एक लम्बी खामोसी जो इतनी लम्बी हो गयी थी, कि खलने लगी थी उनके चेहरे के भावो से मुझे अनुभव हुआ, की वे निश्चय और अनिश्चय के बीच झूल रहे हैं । अंततः उनका चेहरा कुछ कठोर हुआ , मानो कोई निर्णय ले लिया हो । अगले ही क्षण उन्होंने अपने नेत्र मूंद लिये, शायद वे टेलीपैथी के माध्यम से गुरुदेव से संपर्क कर रहे थे, लगभग दो मिनट के उपरांत मुस्कुराते हुए उन्होंने आंखें खोल दीं । "इस मंत्र के मूल तत्त्व की तुम्हारे लिये उपयोगिता ही क्या है?

मंत्र तो तुम जानते ही हो, इसके मूल तत्त्व को छोड़ कर इसकी अपेक्षा मुझसे आकाश गमन सिद्धि,संजीवनी विद्या अथवा अटूट लक्ष्मी ले लो, अनंत सम्पदा ले लो, जिससे तुम संपूर्ण जीवन में भोग और विलास प्राप्त करते रहोगे....ऐसी सिद्धि ले लो, जिससे किसी भी नर अथवा नारी को वश में कर सकोगे ।"

एक क्षण तो मुझे लगा, की उनके दिमाग का कोई पेंच ढीला है, पर मेरा अगला विचार इससे बेहतर था । मैंने सुना था, कि उच्चकोटि के योगी या तांत्रिक साधक को श्रेष्ठ , उच्चकोटि का ज्ञान देने से पूर्व उसकी परीक्षा लेने हेतु कई प्रकार के प्रलोभन देते है, कई प्रकार के चकमे देते है वे भी अपना कर्त्तव्य बड़ी खूबसूरती से निभा रहे थे 

करीब पांच मिनट तक उनकी मुझे बहकाने की चेष्टा पर भी मैं अपने निश्चय पर दृढ़ रहा, तो उन्होंने एक लम्बी सांस ली और कहा "अच्छा ठीक है । बोलो क्या जानना चाहते हो?" "सब कुछ " मैं चहक उठा "सब कुछ अपने गुरु मंत्र एवं उसके मूल तत्त्व के बारे में 

त्रिजटा  अघोरी  ने  परमहंस  स्वामी  निखिलेश्वरानन्द  जी  -- वरिष्ठ  गुरु भाई के सामने जो गुरु मंत्र का ब्रह्माण्डीय रहस्योद्घाटन किया 

अतः आप गुरु मंत्र कि महत्वता तो जानते ही है ,पर क्या आप जानते है कि जिस तरह शिव पंचाक्षरी मंत्र " नमः शिवाय " के प्रत्येक बीज से आदि शंकराचार्य ने शिव पंचाक्षर स्तोत्र कि रचना कि उसी तरह ऋषियों ने गुरु मंत्र के प्रत्येक बीज से भी एक अत्यंत दुर्लभ स्तोत्र कि रचना कि है

" प "

पकार पुण्यं परमार्थ चिन्त्यं, परोपकारं परमं पवित्रं ।

परम हंस रूपं प्रणवं परेशं, प्रणम्यं प्रणम्यं निखिलं त्वमेवं ।। १ ।।

" र "

रम्य सुवाणी दिव्यंच नेत्र, अग्निं त्रिरुपं भवरोग वैद्यं ।

लक्ष्मी च लाभं भवति प्रदोषे, श्री राजमान्य निखिलं शरण्यम् ।। २ ।।

" म "

महामानदं च महामोह निभं , महोच्चं पदं वै प्रदानं सदैवं ।

महनिय रूपं मधुराकुतिं तं, महामण्डलं तं निखिलं नमामि ।। ३ ।।

" त "

तत्व स्वरूपं तपः पुतदानं , तारुण्य युक्ति शक्तिं ददाति ।

तापत्रयं दुरयति तत्त्वगर्भः , तमेव तत्पुरुषमहं प्रणम्यं ।। ४ ।।

" त्वा "

विभाति विश्वेश्वर विश्वमूर्ति , ददाति विविधोत्सव सत्व रूपं ।

प्राणालयं योग क्रिया निदानं , विस्वात्मकम तं निखिलं विधेयम् ।। ५ ।।

" य "

यशस्करं योग क्षेम प्रदं वै , योगश्रियं शुभ्रमनन्तवीर्यं ।

यज्ञान्त कार्य निरतं सुखं च , योगेश्वरं तं निखिलं वदेन्यम् ।। ६ ।।

" ना "

निरामयं निर्मल भात भाजनं , नारायणस्य पदवीं सामुदारभावं ।

नवं नवं नित्य नवोदितं तं , नमामि निखिलं नवकल्प रूपम् ।। ७ ।।

" रा "

रासं महापूरित रामणीयं , महालयं योगिजनानु मोदितं ।

श्री कृष्ण गोपीजन वल्लभं च , रसं रसज्ञं निखिलं वरेण्यम् ।। ८ ।।

" य "

यां यां विधेयां मायार्थ रूपां , ज्ञात्वा पुनर्मुच्यति शिष्य वर्गः ।

सर्वार्थ सिद्धिदं प्रददाति शुभ्रां , योगेन गम्यं निखिलं प्रणम्यम् ।। ९ ।।

" णा "

निरंजनं निर्गुण नित्य रूपं , अणोरणीयं महतो महन्तं ।

ब्रह्मा स्वरूपं विदितार्थ नित्यं , नारायणं च निखिलं त्वमेवम् ।। १० ।।

" य "

यज्ञ स्वरूपं यजमान मूर्ति , यज्ञेश्वरं यज्ञ विधि प्रदानं ।

ज्ञानाग्नि हूतं कर्मादि जालं , याजुष्यकं तं निखिलं नमामि ।। ११ ।।

" गु "

गुत्वं गुरुत्वं गत मोह रूपं , गुह्याति गुह्य गोप्तृत्व ज्ञानं ।

गोक्षीर धवलं गूढ़ प्रभावं , गेयं च निखिलं गुण मन्दिरं तम् ।। १२ ।।

" रु "

रुद्रावतारं शिवभावगम्यं , योगाधिरुढिं ब्रह्माण्ड सिद्धिं ।

प्रकृतिं वसित्वं स्नेहालयं च , प्रसाद चितं निखिलं तु ध्येयम् ।। १३ ।।

" भ्यों "

योगाग्निना दग्ध समस्त पापं , शुभा शुभं कर्म विशाल जालं ।

शिवा शिवं शक्ति मयं शुभं च , योगेश्वरं च निखिलं प्रणम्यं ।। १४ ।।

" न "

नित्यं नवं नित्य विमुक्त चितं , निरंजनं च नरचित मोदं ।

उर्जस्वलं निर्विकारं नरेशं , निरत्रपं वै निखिलं प्रणम्यं ।। १५ ।।

" म "

मातु स्वरूपं ममतामयं च , मृत्युंजयं मानप्रदं महेशं ।

सन्मंगलं शोक हरं विभुं तं , नारायणमहं निखिलं प्रणम्यं ।। १६ ।।

अतः आप इस स्तोत्र कि महत्वता स्वयं समझ सकते हैं 

वन्दे निखिलं जगद्गुरुम

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