स्तोत्र और मन्त्र मे अंतर क्या है
स्त्रोत और मंत्र में क्या अंतर होता है
स्तोत्र मे जब ध्यान से देखेंगे तब पाएंगे की उसमे उन देवी या देवताओं का गुणगान किया गया है और उनकी महिमा बताई गयी है
जब हम बार बार प्रभु के सामने उनका गुणगान सच्चे भाव से करते है तब उनका ashirwa🌹हमें प्राप्त होता है
और यही स्तोत्र हजारों सालो पहले ऋषि मुनीयो द्वारा लिखा गया है क्यों की उस समय वे उन्ही के साथ लीन थे भक्ति मे और ज्ञान का आभास हो चूका था इसलिए ये सब कर पाए |
स्त्रोत और मंत्र देवताओं को प्रसन्न करने के शक्तिशाली माध्यम हैं। आज हम जानेंगे की मन्त्र और स्त्रोत में क्या अंतर होता है। किसी भी देवता की पूजा करने से पहले उससे सबंधित मन्त्रों को गुरु की सहायता से सिद्ध किया जाना चाहिए।
स्त्रोत
किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाता है। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है।
मन्त्र
स्तोत्र को जानने के बाद अब हम मन्त्र के बारे मे विस्तार से जानेंगे
जब मन्त्र की बात आती है तब मन्त्र बहुत से प्रकार के है जिसमे अलग अलग मार्गो के होते है
कुछ मन्त्र जल्दी सिद्धि प्रदान करने वाले होते है तो कुछ आराम से उनका समय निर्धारित होता है उसी के साथ सिद्धि प्रदान करते है
बीज मन्त्र क्या होता है
मन्त्र प्रायः बीज मन्त्र से बनाया गया होता है
और हर बीज मन्त्र का विस्तार अर्थ होता है और उनकी अर्थो के द्वारा हि उनका विवरण की जानकारी मिलती है जब इन बीज मंतो का जाप बार बार होता है तब तब इसकी ऊर्जा ब्रम्हांड तक पहुँचती है और जाप करने वाले व्यक्ति का औरा बहुत बड़ा हो जाता है तो भी व्यक्ति उसके समक्ष आता है वो उसी साथ मिल जाता है उसे बहुत अच्छा लागने लगता है वो बहुत हि ख़ुश हो जाता है भक्ति और शक्ति उस व्यक्ति उसके कन कन मे बस जाती है |
मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है। वैदिक ऋचाओं को भी मन्त्र कहा जाता है। इसे नित्य जाप करने से वो चैतन्य हो जाता है। मंत्र का लगातार जाप किया जाना चाहिए। सुसुप्त शक्तियों को जगाने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं। मंत्र एक विशेष लय में होती है जिसे गुरु के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। जो हमारे मन में समाहित हो जाए वो मंत्र है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ ही ओमकार की उत्पत्ति हुयी है। इनकी महिमा का वर्णन श्री शिव ने किया है और इनमे ही सारे नाद छुपे हुए हैं। मन्त्र अपने इष्ट को याद करना और उनके प्रति समर्पण दिखाना है। मंत्र और स्त्रोत में अंतर है की स्त्रोत को गाया जाता है जबकि मन्त्र को एक पूर्व निश्चित लय में जपा जाता है।
स्तोत्र और मन्त्र को जितना समझें उतना हि काम है
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